चक्रव्यूह में घुसने से पहले, कौन था मैं और कैसा था,
ये मुझे याद ही ना रहेगा चक्रव्यूह में घुसने
के बाद
मेरे और चक्रव्यूह के बीच
सिर्फ़ जानलेवा निकटता थी,
इसका मुझे पता ही नहीं चलेगा
चक्रव्यूह से बाहर निकलने पर
मैं मुक्त हो जाउँ भले ही फिर भी
चक्रव्यूह की रचना में फ़र्क ही ना पड़ेगा
मरू या मारू, मारा
जाऊं या जान से मार दूँ
इसका फ़ैसला कभी ना हो पायेगा
सोया हुआ आदमी जब नींद से
उठकर चलना शुरू करता है तब सपनोंका संसार उसे
फिर से दिख नहीं पायेगा उस रोशनी में, जो निर्णय की रोशनी है
सब कुछ समान होगा क्या?
एक पलड़े में नपुंसकता और दुसरे पलड़े में
पौरुष्य
और ठीक तराजू के कांटे पर...
अर्धसत्य...!
No matter where his life took him and what were the circumstances that made him act, behave and say as he did in the recent past, we will always remember his Inspector Anant Welankar reciting the 'Chakravyuh' Poem by Dilip Chitre to Jyotsna Gokhale and concluding Govind Nihalani's 'ArdhaSatya' with a conviction that carved a niche into our hearts forever...
"सर, मैंने रामा शेट्टी को मार डाला...!"
Good Bye OMji, the Theatre and the Film Fraternity will have a vacant space in your name for eternity...! May your soul find that solace that you never seemed to have here!
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